चुनावी मौसम में आये दिन करोड़ो रूपये और शराब पकडे जाने से ये साफ़ हो जाता है की वर्तमान चुनाव प्रणाली में चुनाव के दौरान बहुत बड़े मात्रा में धन खर्च होता है. बाहुबली और अपराधी किस्म के लोगों के पास अवैध तरीके से इकट्ठा किया गया धन बड़े मात्रा में होता है. यह सर्वविदित तथ्य है. इसी धन के बलबूते ऐसे लोग चुनाव जीत कर संसद व विधानसभा में पहुँच जाते हैं. जिसके चलते भी देश में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर पहुच चूका है.ऐसे लोगों से आम जनता भ्रष्टाचार दूर करने की आशा भी कैसे कर सकती है. क्या चोर चोरी पकड़वाएगा?
इसी मौके की नजाकत को भांप कर देश के बड़े व्यापरिक घराने राजनीतिक दलों को कानूनी ढंग से चंदा देने का रवैया बड़ी तेजी से अपना रहे हैं. सभी राजनितिक दलों को चंदा देके, व्यापरिक घराने एक खतरनाक खेल को सुरक्षित ढंग से खेलते हुए, संतुलन साधने के कोशिश कर रहे हैं. राजनीतिक और व्यापरिक घरानो का ये घिनौना गठजोड़ देश की बदहाली हेतु सबसे अधिक जिम्मेदार है. आधरभूत संरचना और विकास के नाम पर किसानो की जमीन छीन कर , व्यापरिक घरानो को विशेष आर्थिक क्षेत्र, आवासीय फ्लैट, पार्क, एक्सप्रेसवे और अन्य कई गैर जरूरी कामो हेतु औने पौने कीमत पर बाटने का घटिया खेल चल रहा है.
इस साल के ५ राज्यों के चुनाव में आदित्य बिड़ला समूह ने राजनीतिक दलों को कानूनी चंदे की रकम बढा के चार गुना(३० करोड़), जबकि भारती समूह ने कानूनी चंदे की रकम घटा के १७ करोड़ से शुन्य कर दिया है.अगर टू जी घोटाला नहीं हुआ होता तो भारती समूह की चंदे के कहानी भी कुछ और ही होता.
देश के मुख्य दल : कांग्रेस व भाजपा के तमाम ज्ञात (?) स्रोतों से क्रमश: ८४ करोड़ और ८२ करोड़ मिल चुके हैं. राकांपा जैसी क्षेत्रीय दल ने भी ३ करोड़ हथिया लिए हैं.
एक आकड़ा पेश है:
कंपनी रकम ( करोड़ रूपया में )
जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट (आदित्य बिड़ला समूह ) ३०.६
एशियानेट टीवी होल्डिंग प्रा. लि. १२.५
टोरेंट पावर लि. १०.६
इलेक्टोरल ट्रस्ट (टाटा समूह) ९.८
इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेन्ट एंड कंसल्टेंट्स ५.५
हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लि. ५.०
आईटीसी लि. ५.०
स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (इंडिया) ५.०
के एस के एनर्जी वेंचर लि. ४.०
हार्मोनी इलेक्टोरल ट्रस्ट ३.५
( आकड़ा के स्रोत : राजस्थान पत्रिका १२.१.१२)
ये सब आकडे तो दाल में नमक की तरह हैं. इसके अलावा भी कितने ज्ञात अज्ञात स्रोतों से कितने रकम का लेन देन होता है ये सब तो देनेवाले और लेनेवाले ही जानते होंगे. ऐसे माहौल में चुनाव आयोग की सक्रियता, निष्पक्ष चुनाव, पार्टी, उम्मीदवार, विकास, जनहित, और चाल - चरित्र जैसी बातें मात्र मतदाता को धोखा देने के आलावा कुछ नहीं है. शायद यही लोकतंत्र की नियति है.