25 February 2011

एक युग का अंत


भारतीय कॉमिक्स के सृजनकर्ता, अमर चित्र कथा ( २० से अधिक भारतीय भाषाओं में अनुदित लगभग तीस लाख प्रतियों का वार्षिक प्रसार )  के संस्थापक अनंत पई ( जन्म  १७ सितम्बर १९२९, करकाला ,उडुपी ,कर्नाटक,सुशीला और वेंकट राया पई के पुत्र ) का २४ फरवरी को मुंबई में निधन होना एक युग का अंत होना है."अंकल पईके नाम से मशहूर पई जी वर्ष के आयु में अपने माता पिता के स्नेह से बंचित हो गए.१२ साल की उम्र में बम्बई ( आज की मुंबई) में आकर उन्होंने ओरिएंटल स्कूल, माहिम से अध्यन  शुरू किया. प्रकारांत में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से दोहरी उपाधि (रसायन भौतिकी और रसायन तकनीक) अर्जित की.
इण्डिया बुक हाउस के प्रकाशकों के साथ १९६७ में शुरू की गई कॉमिक्स श्रृंखला अमर चित्र कथा के श्री गणेश के साथ उन्होंने भारतीय मूल्यों, आदर्शो, गाथाओ के माध्यम से
बच्चों को परंपरागत भारतीय लोक कथाओं , पौराणिक कहानियों और ऐतिहासिक पात्रों की जीवनियाँ बताई . १९८० में टिंकल नामक बच्चों के लिए पत्रिका का भी उन्होंने संपादन किया. उनकी कृतियों में बीरबल दि क्लैवर, रानी ऑफ झाँसी, गुरू नानक, माँ दुर्गा की कहानियाँ, लव-कुश, ह्वेन सांग , सुभाषचन्द्र बोस, नल-दमयन्ती, शिव पार्वती,तानसेन,एलीफेंन्टा आदि उल्लेखनीय है.
आज जब की हमारे पास जीवन के भाग दौड़ के कारण अपने बच्चों के देने के लिए कुछ भावनात्मक पल  तक  नहीं बचे है, ऐसे परिप्रेक्ष्य में इस तरह की नैतिकता से ओतप्रोत बाल साहित्य की प्रासंगिकता अपने आप सिद्ध हो जाती है. अब इस तरह के निर्माणकारी बाल साहित्य का सृजन आज के भौतिकतावादी प्रकाशकों के लिए फायदे का धंधा नहीं है. पीढ़ियों का सर्वनाश हो इससे उनका कोई सरोकार नहींसविता भाभी के दौर में कौन नैतिक मूल्यों ,आदर्शों,और परम्पराओं का रोना रोये. ये फायदे वाले धंधे नहीं हैं.
पर ऐसी सोच के कारण ही हम आज के नैतिक मूल्य विहीन युवा वर्ग के आयातित विचारों , मूल्यों, और जीवन शैली का दर्शन कर रहें है. आज बाल साहित्य के नाम पर जो परोसा जा रहा है ,उससे आप किस आदर्श की अपेक्षा कर सकते है?
अंत में : आज कल का सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय जुमला " सब चलता है" वाली मानसिकता आने वाले दिनों में भी ऐसी ही रहेगी, आखिर सब चलता है. तो चलते रहिये  आप क्यों रुके हुए हैं.



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