30 December 2011

आइये : गर्व किया जाय

भारतीय वैज्ञानिकों  ने सौर  उर्जा चालित, टच स्क्रीन वाला  ऐसा कम्प्यूटर बनाया है  जो  आई-पोड से भी सस्ता है.
विश्व के ९०% चलने  वाले  कम्प्यूटरों  के चिप का डिजाईन एक  भारतीय द्वारा किया गया है.
विश्व में सबसे अधिक  लोगो को  ( १०,००००० से भी अधिक ) रोजगार  प्रदान करने वाला संगठन भारतीय रेल है,
विश्व में सबसे ज्यादा बिकने वाला डिटर्जेंट पाउडर  ब्रांड भारतीय है
विश्व में सबसे ज्यादा डाकखाने भारत में है .
विश्व के  बेहतरीन बल्लेबाज ,  विश्व वरीयता प्राप्त शतरंज खिलाडी, महिला मुक्केबाज, (Feather weight ) सभी  भारतीय है.
IIT (
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी ) विश्व की  बेहतरीन इंजीनियरिंग प्रतिभा तैयार कर रहा है,
 विश्व के १० सबसे बड़ा धनी लोगों  में भारत के लोग शामिल है,
भारत विश्व का  सरा सबसे बड़ा सड़क श्रंखला वाला देश है,
भारतीय इंजीनियरों ने  विश्व के सबसे ऊँचे पुल का निर्माण द्रास और सुरु नदी ( हिमालय क्षेत्र )  के बीच किया है.
गणित के अति महत्वपूर्ण शाखाओ -  कैलकुलस, trigonometry ( त्रिकोणमिति) ,और  algebra ( बीजगणितकी  उत्त्पत्ति स्थल भारत है,
नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय है,
भारत विश्व का ४था देश है  जिसने  अंतरिक्ष में अपना  PSLV ( Polar Settelit  Launch Vehicle : ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान  ) भेजा है . आदिआदि

यह सर्व विदित है की भारतीय होने  के नाते हमारे पास गर्व करने के लिए  बहुत कुछ है,. हम लोग  उपलब्धि हासिल करने वाले है, मानवता के क्षेत्र में ,
तकनीक के  क्षेत्र में , साहित्य और  संगीत के क्षेत्र में, आध्यात्म के क्षेत्र में. सेवा के क्षेत्र में. त्याग के क्षेत्र में. हमसे कोई भी क्षेत्र अनछुवा नहीं रह गया है.
तो चलिए  जब भी अपने  देश के बारे में किसी  से बात किया जाये  तब हमेशा सकारात्मक रुख अपनाया जाय. भारत  के लिए  जोश को फैलाईये,
जय हिंद

23 December 2011

राजनैतिक आफर


देश में अभी त्योहारों की धूम है. बाजारों में ग्राहकों को लुभाने के लिए लगभग सभी उपभोक्ता वस्तुओं पर आकर्षक आफर दिए जा रहें है ताकि बेहतर व्यापार हो सके. ग्राहकों को दी जाने वाली आफरों में प्रतिशत को लेकर दुकानदारों के बीच काफी प्रतियोगिता चल रही है. हरेक ब्रांड ग्राहकों को लुभाने के लिए अधिकाधिक छूट देकर उन्हें अपनी ओर खिचने की व्यावसायिक कोशिश में लगा हुआ है.
कुछ इसी तरह का बाजार चुनावी त्योहारों में राजनैतिक दलों ने भी सजा रखा है. पर यहाँ एक मूल फर्क है : राजनैतिक दलों (तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल ) ने ये आफर मात्र मुसलमानों के लिए रखा है. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों के नजर में भारत में मात्र मुसलमान ही अल्पसंख्यक है. जैन, बुद्ध, सिक्ख और इसाईं इस दायरे में नहीं आते, क्योंकि वो वोट बैंक की अहर्ताओं को पूरा नहीं करते.
चुनावी पिटारे से तरह तरह के सनातन न पूरा किये जाने वाले वादे और सुविधाओं के श्रोत फुट पड़े है, जो निरंतर प्रवाहमान हैं. तिस पर आलम ये है की भारतीय मुसलमान भी इस सनातनी वादों और सुविधाओं के श्रोत से अपनी प्रगति की घूंट भर कर आह्लादित हो रहा है. दोनों एक दूसरे को छल रहे हैं.
मुसलमानों ने अपने विकास, उन्नति और सबलता का सपना तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों के द्वारा चुनावी भोज में फेके गए टुकडो में ही देख रहा है. आखिर कब तक मुसलमान इन वादों, आश्वासनों से खुद को छलता रहेगा? वो क्यों नहीं समझता की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों को चुनावी बैतरनी पार करने के समय ही मुसलमानों की याद क्यों सताने लगती है.? वो क्यों छूट, सुविधाओं, आरक्षण के न पूरा किये जाने वाले मौसमी वादों में अपनी प्रगति का राह देखता है?
आजादी के इतने सालों बाद , इतने वादों के बाद देश के मुसलमान के माली हालत में कोई विशेष फर्क दिखाई तो नहीं पड़ता. जबकि प्रत्येक चुनाव में एक से एक बढ़कर दावे किये जाते रहे है.  एक आम मुसलमान आज भी वही खड़ा है जहाँ वो देश आजाद होने के समय था. तमाम सुविधाओं का लाभ सबल और सशक्त मुसलमान ही उठा पाते है, फिर ये सुविधाएँ कैसे जनहितकारी कही जा सकती है? दरअसल यह एक राजनैतिक छलावा मात्र है.
अपने कौमी तरक्की और सबलता के लिए मुसलमानों को खुद सामने आना होगा. मजहबी तंगदिली से ऊपर उठकर सबसे पहले अपने आप को शिक्षित करना पड़ेगा. अपने अधिकारों के लिए खुद को सबल बनाना होगा. अपने लोगों को चुनकर उनसे अपनी मांगे पूरी कराने का दबाव बनाना होगा. वर्ना खुद को इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों के चुनावी टुकडो के हवाले कर देना होगा.
मुसलमानों के स्व – घोषित हितैषी नेताओ बसपा (जिन्होंने मुसलमानों के आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन तक की राय दे डाली है), काँग्रेस ( जिसका सबसे बड़ा श्रेय तथाकथित तुष्टिकरण के नाम पर देश विभाजन और सर्वाधिक सत्तासीन होने के बावजूद जिसके दौर में मुसलमानों के तरक्की का नतीजा सिफर रहा है ) जैसी पार्टियों से  सावधान रहने के जरूरत है. आखिर भारतीय मुसलमान कब तक ऐसे भ्रम की स्थिति में पड़ा रहेगा ? कब तक राजनितिक खैरात में अपनी तरक्की का रास्ता ढूंढता रहेगा? किसी को तो आकार इस वादों के अमरबेल को नकार कर खुद के बल पर अपना मुकद्दर अपने हाथों से लिखना पड़ेगा.



  

13 December 2011

तुगलकी फरमान


चंद वकीलों, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेताओ और स्वतन्त्र सोच और शक्ति रहित मुखिया के सहारे चल रहे सरकार ने सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर रोक लगाने का तुगलकी फरमान जारी कर अपने मानसिक दिवालिएपन का सबूत दिया है.
इस कुकृत्य की पृष्ठभूमि उस वक्त तैयार हुई जब सरकार के कर्मो से दुखी किसी ने नेट पर राजमाता सोनिया और उनके पालतू प्रधानमंत्री के बारे में आपतिजनक सामग्री चस्पा कर दी. इसके बाद सिब्बल की नेट कम्पनियों के अधिकारीयों के साथ १ सितम्बर २०११  को बैठक हुई . चार सप्ताह के भीतर रास्ता निकालने के लिए कहा गया.
२० नवंबर २०११ को फेसबुक पर संप्रदाय विशेष के खिलाफ एक पोस्ट डाला गया, जिसके बाद उदयपुर और  डूंगरपुर में तनाव की स्थिति पैदा होने के फलस्वरूप पोस्ट को हटा दिया गया.
५ दिसंबर २०११ को सोशल नेटवर्किंग साईट वाली कंपनियों को अपने दफ्तर बुलाकर सिब्बल ने चेताया की कंपनियों ने अगर कदम नहीं उठाये तो सरकार कदम उठाएगी.
६ दिसंबर २०११ को सिब्बल ने सेंसरशिप की खुलकर वकालत की, राजमात सम्बन्धी शिकायत और सांप्रदायिक तनाव का हवाला दिया, जिसका पुरजोर विरोध हुआ.
७ दिसंबर २०११ को फेसबुक पर से राजमाता संबधी पोस्ट हटा दिया गया.
९ दिसंबर २०११ को अपनी फितरत के अनुसार जब चौतरफा दवाब पड़ा, तब सार्वजनिक रूप से २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले को नकारने वाले सिब्बल ने कहा इंटरनेट सेंसर करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.
इन तमाम घटनाओ के सन्दर्भ में एक प्रश्न बार बार उठता है की क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले देश का तमगा हासिल कर चुके भारत में चीन और सीरिया जैसे अलोकतान्त्रिक देशो की तरह अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने की शुरुआत हो चुकी है?
क्या देश के हर नागरिक को आरोपी या अपराधी मानते हुए और उन्हें शक की निगाह से देखते हुए उनके विचारों और अभिव्यक्ति की निगरानी शुरू होने वाली है?
इंटरनेट आज दुनिया में अभिव्यक्ति का सबसे वृहद माध्यम है. भारत इस मामले में उन देशो में शीर्ष पर है जिसे इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है. लेकिन लगता है सरकार सोशल नेटवर्किंग साईटो के जरिये लोगों के विचारों व अभिव्यक्ति पर सेंसर की कैची चलाने वाली है.
जब लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से जनता का संवाद टूट जाता है तब मतदाता अपने विचार और आक्रोश सोशल नेटवर्किंग साईटो पर व्यक्त करने को बाध्य हो जातें है, इसे अपने लिए लोगों की राय और रिपोर्ट कार्ड की तरह देखने के बजाय उस पर रोक लगाने की घृणित कोशिश की जा रही है.
इन दिनों सरकार की इतनी निरंकुशता बढ़ गयी है की विपक्ष के मुद्दे तक निर्धारित करने,बिना वाजिब बहस मुसाहिब के विधेयक की घोषणाएँ कर देने, अपने विरोधियों ( रामदेव बाबा, अन्ना टीम ) पर कानूनी शिकंजा कसने जैसे मुद्दों पर सारी उर्जा व्यय कर रही है.
सरकार में बैठे उन तमाम विदेशी डिग्रीधारकों, अति शिक्षित विद्वानों, अर्थशास्त्रियों को क्या ये बात समझ में नहीं आती की उनकी इस निकृष्ट कोशिश से देश में विदेशी निवेश पर असर पड़ेगा.लोगों के गुस्सा और खुशी जाहिर करने से रोकने से उपजने वाला मानसिक उद्विग्नता कितना विष्फोटक रूप ले सकता है.
दरअसल सरकार की नाकामी से नाखुश लोगों के लिए सोशल नेटवर्किंग साईट्स एक सेफ्टी वाल्व का काम कर रही है.
सरकार का काम इन्हें सेंसर करने के बजाये लोगों को सिखाना चाहिए की क्या देश के हित में है और क्या नहीं है, सरकार को अपनी छवि सुधारने, अपने मतदाताओ के प्रति जबावदेही निर्धारित करने में धयान देना चाहिए.
इसके साथ साथ दोहरी नीति का पालन करने वाली सोशल नेटवर्किंग कंपनियों पर दवाब रखना चाहिए.