29 March 2011

कैसे बचोगी तुम?

आखिर कब तक
और ,
कैसे बचोगी तुम?
हमने
पूरा जाल बुन रखा है,
पहले तुम्हे गर्भ में,
फिर,
घर में,
पंचायत  में,
फिर भी
बच गई तो
ससुराल में
मार डालेंगे.

हम तुम्हे आदर देंगे
"माँ" के रूप में
दुलार करेंगे,
"बेटी" के रूप में,
प्यार करेंगे,
"पत्नी "के रूप में,

फिर भी बच गयी तो.....
सरेआम
छीटाकशी
इज्जत को तारतार करेंगे,
"भोग्या" का तमगा
सेक्स सिम्बल  बना
लोगों में परोस देंगे,

आखिर कब तक
और ,
कैसे बचोगी तुम?

अब  तुम
"श्रद्धा" की पात्र नहीं हो,
संपत्ति हो,
व्यक्ति नहीं,
बला हो,व्यापार हो,  .
मुक्ति मिली तो,
बला टली,
बची तो..
व्यापार हुआ.....










2 comments:

  1. उम्दा शब्दों का जाल बिछाये हैं मजा आ गया |

    यहाँ भी आयें.......
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  2. संपत्ति हो,
    व्यक्ति नहीं,
    बला हो,व्यापार हो, .
    मुक्ति मिली तो,
    बला टली,
    बची तो..
    व्यापार हुआ.....

    अत्यंत यथार्थवादी पंक्तियां...
    सच्चाई को वयां करती हुई कविता के लिए हार्दिक बधाई...

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