22 April 2011

शहर


उसने ,
अपने पसीने से
शहर की ,
बगिया को सींचा.

उसने ,
अपने रतजगे से,
शहर की ,
पहरेदारी की,

उसने,
अपने श्रम से,
शहर की,
इमारतें खड़ी की,

उसने,
सब कुछ छोड़,
शहर से ,
आशनाई की,

पर...
हाय  रे हतभाग्य...
उसे उसी शहर ने,
बेदखल कर डाला,
क्योंकि ,
वोह उस शहर की बोली वाला ,
जात वाला
  था.

1 comment:

  1. आपकी भावभरी प्रस्तुति को पढ़ा और मंत्रमुग्ध हुआ | आपको ढेर सारी शुभकामना | साथ ही धन्यवाद |

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