01 November 2011

बंगलौर : एक रूप ये भी


बंगलोर के बारे में किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है . इसे भारत का सिलिकान वैली, आई टी हब, पेंशनर्स पैराडाईज, पब सिटी वगैरह कहा जाता है. यहाँ का मौसम खुशगवार होता है. बौधिक क्षमता वाले कर्मचारियों का शहर है, तमाम विधाओं वाले शिक्षण संस्थानों का केन्द्र आदि - आदि. 

लेकिन इसके साथ ही इस शहर का एक स्याह पहलु भी है जो शुरुआत में देखने में तो समझ में नहीं आता. जैसे जैसे आप यहाँ के  स्थानीय लोगों, सरकारी कार्यालयों, शिक्षण संस्थानों के संपक में आते जाते है तब इस शहर की कलइ खुलने लगती है और इसका असली चेहरा सामने आने लगता है जो बड़ी चतुराई से शालीनता के चादर की आड़ में छुपाया गया है.

यहाँ पर बस कंडक्टर को जैसे ही आप ५ रूपये के टिकट के लिए ५ रूपये से अधिक का नोट देंगे तब कंडक्टर टिकट के पीछे आपको वापस किये जाने वाले राशि को लिख देगा.
(क्योंकि अधिकांशतः उनके पास आपको लौटने के लिए पैसे नहीं होते हैं.) इसके पीछे निहितार्थ ये होता है की अव्वल तो आप अपने स्टॉप पर उतरने के हड़बड़ी में टिकट के पीछे लिखी गयी राशि को कंडक्टर से लेना भूल जाएँ. कई बार ऐसा भी होता है की यदि आपका स्टॉप आने वाला है या आ गया तो कंडक्टर जानबूझ कर अन्य यात्रियों से टिकट लेनदेन में व्यस्त होने का ढोंग करने लगेगा, ऐसा भी हो सकता है की वो जान बुझ कर आप से दूर यात्रियों के भीड़ में उलझ जाने का स्वांग करने लगे ताकि आप उस तक न पहुच पाए और मजबूरन आप  को बस से उतरना पड़ जाएँ. ऐसा नुख्सा अक्सर नए लोगों, प्रेमी जोड़ो, और जल्दबाज लोगो के साथ अपनाया जाता है.

 कई बार कंडक्टर ५ रूपये के टिकट के स्थान पर आपसे ३ रूपये लेकर आपको टिकट नहीं देगा, और आपको आपके गंतव्य तक बिना टिकट के पंहुचा देगा. ऐसा अक्सर बंगलौर शहर से उपनगरों को जाने बसों में किया जाता है. ( ये ३ रुपया कहाँ जाता है आप समझ सकते हैं) अशिक्षित लोगों को उपयोग किये गए टिकटों को पुनः बेचा जाता है.

बंगलौर महानगर पालिका ने यात्रियों के सुविधा के लिए दैनिक पास( साधारण बस ४५ एवं वोल्वो बस का ९० रूपये) का प्रावधान रखा है. पास पर यात्री का हस्ताक्षर अनिवार्य होता है. अधिकतर लोग ऐसा नहीं करते. बल्कि कुछ लोग पास का प्रयोग कर उसे वापस कुछ कम राशि में बेच देते हैं.

ऑटो चालक जब मनमाने पैसे वसूलना चाहेगा तब आपसे स्थानीय भाषा में बात करने लगेगा और ऐसा जताने की कोशिश करेगा की उसे हिंदी मालूम नहीं है. जबकि बंगलौर जैसे शहर का लगभग हर ऑटो वाला कामचलाऊ हिंदी जानता ही है. ( ऐसा नुख्सा मुसलमान ऑटो चालक नहीं अपनाते).

आई टी कंपनी के तमाम कैब (कर्मचारियों को ले जाने / ले आने वाले वाहन) रोज नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हैं. उनका GPRS अधिकतर बंद होता है, ऐसा नियम है की यदि कैब में सवार होने वाली पहली कर्मचारी महिला है, तो पिक अप हेतु चालक के साथ में सुरक्षाकर्मी का होना अनिवार्य है ( ऐसा नियम कैब चालकों द्वारा महिला कर्मचारियों के बलात्कार के बाद लागु किया गया था) पर अक्सर ऐसा नहीं होता और महिला कर्मचारियों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है .

यहाँ पर खुले आम गैस रेग्युलेटर बिकते हैं. 

अधिकतर मकान मालिक किराये की राशि का रशीद नहीं देते, और तो और घर का व्यावसायिक प्रयोग करने के बावजूद घरेलु बिजली का बिल अदा करते हैं. 

एक प्लाट को कई लोगों को बेचा जाता है. जमीन, वाहन आदि के पंजीयन में निर्विवाद  निर्धारित राशि घूस के रूप में खुले आम ली और दी जाती है. 

तो अगली बार जब आप बंगलौर ( लगभग अधिकतर भारतीय आजकल बंगलौर के नाम से ही चौंधियां जाते है ) आये तो उपरोक्त तथ्यों को अवश्य ध्यान में रखे.

नोट : आगामी ब्लॉग में कुछ और भ्रम टूटेंगे . 

3 comments:

  1. कमोबेश आजकल हरेक बड़े शहर की दिनचर्या इसी राह पर चल पड़ी है.अब ये रोग दक्षिण भारत के शहरों को भी लग गया है, जिन्हें उत्तर भारतीय शहरों की अपेक्षा पाक साफ़ समझा जाता रहा है.

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  2. niraj vishwakarma05 November, 2011 21:11

    बेईमानी को आजकल सामाजिक मान्यता मिल चूका है. हमाम में सभी नंगे हैं.

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  3. आप का ब्लॉग आज पढ़ा . आप ने ठीक ही कहा है की दूर से महानगरों की चमक सामने से देखने पर विकृतियों में बदल जाती है.

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