13 December 2011

तुगलकी फरमान


चंद वकीलों, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेताओ और स्वतन्त्र सोच और शक्ति रहित मुखिया के सहारे चल रहे सरकार ने सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर रोक लगाने का तुगलकी फरमान जारी कर अपने मानसिक दिवालिएपन का सबूत दिया है.
इस कुकृत्य की पृष्ठभूमि उस वक्त तैयार हुई जब सरकार के कर्मो से दुखी किसी ने नेट पर राजमाता सोनिया और उनके पालतू प्रधानमंत्री के बारे में आपतिजनक सामग्री चस्पा कर दी. इसके बाद सिब्बल की नेट कम्पनियों के अधिकारीयों के साथ १ सितम्बर २०११  को बैठक हुई . चार सप्ताह के भीतर रास्ता निकालने के लिए कहा गया.
२० नवंबर २०११ को फेसबुक पर संप्रदाय विशेष के खिलाफ एक पोस्ट डाला गया, जिसके बाद उदयपुर और  डूंगरपुर में तनाव की स्थिति पैदा होने के फलस्वरूप पोस्ट को हटा दिया गया.
५ दिसंबर २०११ को सोशल नेटवर्किंग साईट वाली कंपनियों को अपने दफ्तर बुलाकर सिब्बल ने चेताया की कंपनियों ने अगर कदम नहीं उठाये तो सरकार कदम उठाएगी.
६ दिसंबर २०११ को सिब्बल ने सेंसरशिप की खुलकर वकालत की, राजमात सम्बन्धी शिकायत और सांप्रदायिक तनाव का हवाला दिया, जिसका पुरजोर विरोध हुआ.
७ दिसंबर २०११ को फेसबुक पर से राजमाता संबधी पोस्ट हटा दिया गया.
९ दिसंबर २०११ को अपनी फितरत के अनुसार जब चौतरफा दवाब पड़ा, तब सार्वजनिक रूप से २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले को नकारने वाले सिब्बल ने कहा इंटरनेट सेंसर करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.
इन तमाम घटनाओ के सन्दर्भ में एक प्रश्न बार बार उठता है की क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले देश का तमगा हासिल कर चुके भारत में चीन और सीरिया जैसे अलोकतान्त्रिक देशो की तरह अभिव्यक्ति की आजादी को बाधित करने की शुरुआत हो चुकी है?
क्या देश के हर नागरिक को आरोपी या अपराधी मानते हुए और उन्हें शक की निगाह से देखते हुए उनके विचारों और अभिव्यक्ति की निगरानी शुरू होने वाली है?
इंटरनेट आज दुनिया में अभिव्यक्ति का सबसे वृहद माध्यम है. भारत इस मामले में उन देशो में शीर्ष पर है जिसे इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है. लेकिन लगता है सरकार सोशल नेटवर्किंग साईटो के जरिये लोगों के विचारों व अभिव्यक्ति पर सेंसर की कैची चलाने वाली है.
जब लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से जनता का संवाद टूट जाता है तब मतदाता अपने विचार और आक्रोश सोशल नेटवर्किंग साईटो पर व्यक्त करने को बाध्य हो जातें है, इसे अपने लिए लोगों की राय और रिपोर्ट कार्ड की तरह देखने के बजाय उस पर रोक लगाने की घृणित कोशिश की जा रही है.
इन दिनों सरकार की इतनी निरंकुशता बढ़ गयी है की विपक्ष के मुद्दे तक निर्धारित करने,बिना वाजिब बहस मुसाहिब के विधेयक की घोषणाएँ कर देने, अपने विरोधियों ( रामदेव बाबा, अन्ना टीम ) पर कानूनी शिकंजा कसने जैसे मुद्दों पर सारी उर्जा व्यय कर रही है.
सरकार में बैठे उन तमाम विदेशी डिग्रीधारकों, अति शिक्षित विद्वानों, अर्थशास्त्रियों को क्या ये बात समझ में नहीं आती की उनकी इस निकृष्ट कोशिश से देश में विदेशी निवेश पर असर पड़ेगा.लोगों के गुस्सा और खुशी जाहिर करने से रोकने से उपजने वाला मानसिक उद्विग्नता कितना विष्फोटक रूप ले सकता है.
दरअसल सरकार की नाकामी से नाखुश लोगों के लिए सोशल नेटवर्किंग साईट्स एक सेफ्टी वाल्व का काम कर रही है.
सरकार का काम इन्हें सेंसर करने के बजाये लोगों को सिखाना चाहिए की क्या देश के हित में है और क्या नहीं है, सरकार को अपनी छवि सुधारने, अपने मतदाताओ के प्रति जबावदेही निर्धारित करने में धयान देना चाहिए.
इसके साथ साथ दोहरी नीति का पालन करने वाली सोशल नेटवर्किंग कंपनियों पर दवाब रखना चाहिए.

2 comments:

  1. No Facewash can wash the blots on the face of Congress. So they want to ban on all mirrors like Facebook.

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  2. imported netao ki chaplusi karne walo se hum ummid bhi kya kar sakte hai.

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